Thursday, 7 May 2015

सरस्वती नदी : सूचना-संकलन - 4








सरस्वती नदी : सूचना-संकलन - 3







सरस्वती नदी : सूचना-संकलन - 1

सरस्वती नदी पौराणिक हिन्दू धर्म ग्रन्थों तथा ऋग्वेद में वर्णित मुख्य नदियों में से एक है। ऋग्वेद के नदी सूक्त में सरस्वती का उल्लेख है, 'इमं में गंगे यमुने सरस्वती शुतुद्रि स्तोमं सचता परुष्ण्या असिक्न्या मरूद्वधे वितस्तयार्जीकीये श्रृणुह्या सुषोमया' वेद पुराणों में गंगा और सिंधु से ज्यादा महत्त्व सरस्वती नदी को दिया गया है। इसका उद्गम बाला ज़िला के सीमावर्ती क्षेत्र सिरपुर की शिवालिक पहाड़ियों में माना जाता है।

सरस्वती नदी  उत्तरांचल में रूपण नाम के हिमनद (ग्लेशियर) से निकली। रूपण ग्लेशियर को अब सरस्वती ग्लेशियर भी कहा जाने लगा है। नैतवार में आकर यह हिमनद जल में परिवर्तित हो जाता था, फिर जलधार के रूप में आदि बद्री तक सरस्वती बहकर आती थी और आगे चली जाती थी। महाभारत में मिले वर्णन के अनुसार सरस्वती हरियाणा में यमुना नगर से थोड़ा ऊपर और शिवालिक पहाड़ियों से थोड़ा सा नीचे आदि बद्री नामक स्थान से निकलती थी। आज भी लोग इस स्थान को तीर्थस्थल के रूप में मानते हैं और वहां जाते हैं। किन्तु आज आदि बद्री नामक स्थान से बहने वाली नदी बहुत दूर तक नहीं जाती एक पतली धारा की तरह जगह-जगह दिखाई देने वाली इस नदी को लोग सरस्वती कह देते हैं। वैदिक और महाभारत कालीन वर्णन के अनुसार इसी नदी के किनारे ब्राह्मावर्त था, कुरुक्षेत्र था, लेकिन आज वहां जलाशय हैं। अब प्रश्न उठता है कि ये जलाशय क्या हैं, क्यों हैं? उन जलाशयों में भी पानी नहीं है। इस परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो किसी नदी के सूखने की प्रक्रिया एक दिन में तो होती नहीं, यह कोई घटना नहीं एक प्रक्रिया है, जिसमें सैकड़ों वर्ष लगते हैं। जब नदी सूखती है तो जहां-जहां पानी गहरा होता है, वहां-वहां तालाब या झीलें रह जाती हैं। ये तालाब और झीलें अर्द्ध-चन्द्राकार शक्ल में पायी जाती हैं। आज भी कुरुक्षेत्र में ब्रह्मसरोवर या पेहवा में इस प्रकार के अर्द्ध-चन्द्राकार सरोवर देखने को मिलते हैं, लेकिन ये भी सूख गए हैं। लेकिन ये सरोवर प्रमाण हैं कि उस स्थान पर कभी कोई विशाल नदी बहती थी और उसके सूखने के बाद वहां विशाल झीलें बन गयीं। यदि वहां से नदी नहीं बहती थी तो इतनी बड़ी झीलें वहां कैसे होतीं? इन झीलों की स्थिति यही दर्शाती है कि किसी समय यहां विशाल नदी बहती थी।

वेद और पुराणों में सरस्वती का वर्णन नदी के रूप में नहीं, बल्कि वाणी तथा विद्या की देवी के रूप में हुआ है। स्कंदपुराण और महाभारत में इसका विवरण बड़ी श्रद्धा-भक्ति से किया गया है। इनके अनुसार सरस्वती नदी हिमालय से निकलकर कुरुक्षेत्र, विराट, पुष्कर, सिद्धपुर, प्रभास आदि इलाकों से होती हुई गुजरात के कच्छ के रास्ते से सागर में मिलती थी। प्रयाग में गंगा और यमुना से सरस्वती का संगम हुआ। कई भू-विज्ञानी मानते हैं, और ऋग्वेद में भी कहा गया है, कि हज़ारों साल पहलेसतलुज (जो सिन्धु नदी की सहायक नदी है) और यमुना (जो गंगा की सहायक नदी है) के बीच एक विशाल नदी थी जो हिमालय से लेकर अरब सागर तक बहती थी। आज ये भूगर्भी बदलाव के कारण सूख गयी है। ऋग्वेद में, वैदिक काल में इस नदी सरस्वती को 'नदीतमा' की उपाधि दी गयी है। उस सभ्यता में सरस्वती ही सबसे बड़ी और मुख्य नदी थी, गंगा नहीं। सरस्वती नदी हरियाणा, पंजाब व राजस्थान से होकर बहती थी और कच्छ के रण में जाकर अरब सागर में मिलती थी। तब सरस्वती के किनारे बसा राजस्थान भी हराभरा था। उस समय यमुना, सतलुज व घग्घर इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ थीं। बाद में सतलुज व यमुना ने भूगर्भीय हलचलों के कारण अपना मार्ग बदल लिया और सरस्वती से दूर हो गईं। हिमालय की पहाड़ियों में प्राचीन काल से हीभूगर्भीय गतिविधियाँ चलती रही हैं।

वह दिन दूर नहीं जब विलुप्त हो चुकी सरस्वती का पानी धरती पर नदी के रूप में बहता दिखेगा। इसकी शुरुआत मंगलवार 5/5/2015  को हो गई है। बिलासपुर खंड के मुगलवाली गांव में खुदाई के दौरान सरस्वती का पानी मिला। वह भी एक या दो नहीं बल्कि चार स्थानों पर।

मुगलवाली गांव में मनरेगा के तहत 80 मजदूर काम कर रहे थे। सचिव बलकार सिंह ने बताया कि करीब आठ फीट गहराई पर जब खलील अहमद, सलमा, प्रदीप व प्रवीन कुमार दोपहर करीब एक बजे खुदाई कर रहे थे तो अचानक जमीन में से पानी की धारा फूट पड़ी। पहले थोड़ा पानी निकला, लेकिन जैसे ही ज्यादा खुदाई की तो पानी की मात्र बढ़ती चली गई। पानी निकलते ही मजदूर वहां जमा हो गए। देखते ही देखते चार जगहों पर सरस्वती का पानी निकलने लगा।

धरती से सरस्वती का पानी निकलने की खबर पूरे जिले में फैल गई और लोगों का जमावड़ा मुगलवाली में लग गया। डीसी डॉ. एसएस फूलिया और एसडीएम बिलासपुर पूजा चांवरिया भी मौके पर पहुंचे।








सरस्वती नदी : सूचना-संकलन - 2


                      




Sunday, 18 January 2015

वार्षिक देवपूजन व् भण्डारे के कार्यक्रम 2015

11 जनवरी 2015 को श्री आदिबद्री केदारनाथ तीर्थ क्षेत्र ग्राम काठगढ़ जिला यमुनानगर में हमारी मित्र मण्डली ने अपने वार्षिक देवपूजन व् भण्डारे के कार्यक्रम को आयोजित किया।

श्रीमन्त विनय स्वरुप ब्रह्चारी जी के मार्गदर्शन में श्री चौबे जी व श्री हरेराम बाबा जी द्वारा  यह समस्त पूजन कार्यक्रम (देव पूजन व् हवन) हुआ। इस पूजन पर यमुनानगर के विधायक श्री घनश्याम दास जी अरोड़ा ने मुख्य ने भी सपरिवार मुख्य यजमान के रूप में भाग लिया।


 



आज ही के दिन सर्वजनहिताय मंच के तत्वावधान मे एक निशुल्क चिकित्सा शिविर भी लगाया गया जहां बड़ी संख्या में ग्रामीण मरीजों को परामर्श व् औषधियां दी गईं।












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Wednesday, 13 February 2013

वसंत-पंचमी पर्व की हार्दिक शुभ कामनायें।

या कुन्देदु-तुषार - हार धवला या शुभ्रवस्त्रावता,
या वीणावरदण्ड-मंडितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्, देवैः सदा- वंदिता,
सा मां पातु सरस्वती भवगती निःशेषजाड्यापहा।
शुक्लां ब्रह्मविचार- सारपरमामाद्यां जगद्व्यापिनीम्,
वीणापुस्तकधारिणीमऽभयदां जाड्यान्धकरापहाम्।
हस्ते स्फाटिक- मालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्,
वन्दे तां परमेश्वरीं भवगतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्।
वसंत-पंचमी पर्व की हार्दिक शुभ कामनायें। 
माँ सरस्वती आपके परिवार पर अपना आशिर्वाद सदैव बनाये रखेँ।
 

Tuesday, 12 February 2013

10 फ़रवरी 2013 को श्री आदिबद्रीनाथ-श्री केदारनाथ तीर्थ, काठगढ, यमुनानगर मेँ भंडारा

14 फ़रवरी 2013 को वसन्त पंचमी का पर्व है।  इस उपलक्ष्य मेँ हमारी मित्र मंडली ने 10 फ़रवरी 2013 को श्री आदिबद्रीनाथ-श्री केदारनाथ तीर्थ, काठगढ, यमुनानगर मेँ भंडारा आयोजित किया। 
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इस दिन (10 फ़रवरी 2013) कुम्भ का महास्नान इलाहाबाद मेँ था।  इस अवसर पर हमारी मित्र मंडली ने त्रिवेणी की एक घटक सरस्वती जी का पूजन उनके उद्गम स्थल पर ही किया।
सरस्वती नदी के उद्गम स्थल (http://wikimapia.org/4769345/Aadibadri-saraswati-udgam-sthan) पर माँ सरस्वती की पूजा व ध्वज स्थापना करते हुए। 








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माँ अन्नपूर्णा जी की स्तुति करते हुये।





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समस्त देवी-देवताओँ का पूजन करते हुये।





















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पाकशाला मेँ व उसके बाद